एक परिवार का समर्पण है तमाशा

एक परिवार की साधना है तमाशा
-  जयपुर के ब्रह्मपुरी में निवास करने वाले भट्ट परिवार ने तमाशा के लिए जीवन को समर्पित किया
जयपुर। सैकड़ों वर्ष पुरानी प्राचीन विधा तमाशा वर्तमान में भी पूरी जीवंतता के साथ छोटे अखाड़े में होली पर खेला जाता है। पं. वासुदेव भट्ट के निर्देशन में आज 9 मार्च को होली के दिन मैं भी मेरे अजीज़ राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष अशोक पांड्या के  साथ ब्रह्मपुरी छोटा अखाड़ा तमाशा देखने पहुंचा। यहां पर काफी संख्या में तमाशा के कद्रदान पहले से ही मौजूद थे। इस बार तमाशा रांझा हीर थीम पर खेला गया। तमाशे की खास बात है कि पौराणिक रागों पर आधारित गायन विधा इसकी जान होती है और सूत्रधार के रूप में संवाद इसकी लयात्मकता का उदाहरण है। यहां पर तीन पीढ़ियों को तमाशे में एक साथ देखना भी रोमांचक रहा। वहीं नई पीढ़ी के छोटे बच्चे पूरी शिद्दत के साथ तमाशा को आत्मसात करने में लगे हुए हैं। ऐसा उन्हें देखने पर अहसास हुआ। यह देखने के बाद मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है कि तमाशा जैसी प्राचीन विधा आने वाले समय में भी पूरी तरह जीवित और जीवंत रहेगी।