उतारें थोथी लोकप्रियता का चश्मा
















खरी खरी…
राहुल गौतम की कलम से…

फिल्म, सिनेमा, चित्रकारी और साहित्य यह समाज का आईना होते हैं। इनमें काम करने वाले विशिष्ट व्यक्तियों की समाज में विशेष भूमिका होती है। इसीलिए इनकी जिम्मेदारी समाज के प्रति अन्य नागरिकों की अपेक्षा बड़ी होती है। समाज को फिल्म सिनेमा के जरिए स्वस्थ मनोरंजन के विषय देना निर्माता-निर्देशक और कलाकारों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। वहीं एक चित्रकार को अपनी तूलिका के माध्यम से केनवास पर वह विषय उकेरना शोभा देता है जिससे समाज को एक नवीन दिशा मिलती हो ताकि समाज की युवा पीढ़ी अपने गौरव पथ पर अग्रसर होकर सांस्कृतिक दृष्टि से एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सके। कुछ समय से देखने में आया है कि जहां कुछ चित्रकार अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ढाल बनाकर नारी चित्रण के नाम पर अश्लीलता परोस रहे हैं तो देवी देवताओं के नाम पर उन्हें नग्न दिखाया जाता है। यह सभी बातें दिन-ब-दिन समाज को पथभ्रष्ट कर रसातल की तरफ ले जा रही हैं। वहीं फिल्म और सिनेमा के बहाने कुछ निर्माता-निर्देशक अनर्गल और विरोधाभासी सामग्री ऐतिहासिक विषयों में डालकर उसे कंट्रोवर्सी का स्वरूप प्रदान कर थोथी एवं सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का कुत्सित षड्यंत्र रचकर अपनी घटिया मानसिकता का सबूत दे रहे हैं। राजस्थान की गौरव गाथा को अपने में समेटी त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति महारानी पद्मिनी देवी पर विवादित फिल्म बनाकर निर्माता-निर्देशक ने जो राजस्थान के इतिहास की तोहीन करने की साजिश रची उससे राजस्थान के नागरिकों को एक सबक लेना चाहिए एवं राजस्थान में किसी भी फिल्म की शूटिंग तब तक नहीं करने देनी चाहिए जब तक हमारे यहां के साहित्यकार इतिहासकार और बुद्धिजीवी प्रस्तावित सब्जेक्ट को क्लीन चिट नहीं दे दें।