असरानी ने कहा था तकिये पर बैठाउँगा तब बजेगा तबला
राहुल गौतम
जयपुर। 1958 में जब 8 वर्ष का बच्चा तबले जैसे कठिन साज पर अपनी नन्ही अँगुलियों का करिश्मा दिखाने को उत्सुक हो और तभी रेडियो पर उद्घोषणा कर रहे असरानी जैसी शख्सियत यह कहे कि तबला बजेगा लेकिन तकिये पर बैठाउँगा तब। इस वाकये को जब आज याद करता हूँ तो किसी रोमांच से कम नहीं लगता। यह कहना है 56 वर्षों से तबला वाद्य को खुदा की इबादत मान स्वर और लय के हर रोज फूल अर्पित कर रहे उस्ताद निसार हुसैन का। संगीत के क्षेत्र में अथक रियाज और अनुभव के दम पर वर्तमान में भी मंचों की शान बढ़ा रहे इस फनकार ने संगीत की तीनों विधाओं में समान वर्चस्व कायम किया है। निसार हुसैन ने तबले की तालीम अपने पिता और गुरु उस्ताद काले खां और बड़े ताऊ उस्ताद शफ़ी खां से ली। निसार आकाशवाणी से टॉप ग्रेड कलाकार से सेवा निवृत हुए हैं।
बिरजू महाराज ने की तारीफ
बात 1978 की है। जब कथक के नामचीन कलाकार पं. बिरजू महाराज खजुराहो फेस्टिवल में नाच रहे थे तब निसार हुसैन उनके साथ संगत कर रहे थे। लय के साथ थिरकते बिरजू महाराज के पांव और तबले पर थिरकती उनकी अंगुलियां संगीत रसिकों को रोमांचित कर रही थीं। तभी बिरजू महाराज ने कहा ऐसा लग रहा है जैसे निसार उनके साथ बरसों से बजा रहे हैं।मुम्बई में तबले के दिग्गज अहमद जान थिरकवां एवं पद्म विभूषण पं. किशन महाराज के समक्ष भी प्रस्तुति दी है।
जयपुर यूं आया दिल्ली-अजराडा घराना
उस्ताद निसार हुसैन ने बताया कि उनके बड़े ताऊ मोहम्मद शफी खां अजराडे घराने के शागिर्द थे वहीँ दिल्ली घराने के तबला नवाज खुर्शीद खां जयपुर आकर बस गए।इन दोनों कलाकारों ने जयपुर में दिल्ली और अजराडे घराने का तबला स्थापित किया।वहीँ हिदायत खां ने पं. चिरंजीलाल से तबले की शिक्षा ली।
तीनों विधाओं में महारथ
उस्ताद निसार हुसैन संगीत की तीनों विधा गायन, वादन और नृत्य के साथ तबला संगत में महारथ रखते हैं। देश के दिग्गज फनकारों में पं. बिरजू महाराज, सितारा देवी, पं. जसराज, निर्मला देवी, पं. कृष्ण कुमार, लक्ष्मी शंकर, उस्ताद गुलाम मुस्तफा खां, उस्ताद अली अकबर खां, उस्ताद सुल्तान खां, उस्ताद अमजद अली खां, उस्ताद शाहिद परवेज एवं पं. शशि मोहन भट्ट के साथ संगत का बड़ा अनुभव रखते हैं।उन्होंने कहा कि संगीत को लोगों में जीवित रखने के लिए वक़्त के साथ चलना होगा।
जयपुर। 1958 में जब 8 वर्ष का बच्चा तबले जैसे कठिन साज पर अपनी नन्ही अँगुलियों का करिश्मा दिखाने को उत्सुक हो और तभी रेडियो पर उद्घोषणा कर रहे असरानी जैसी शख्सियत यह कहे कि तबला बजेगा लेकिन तकिये पर बैठाउँगा तब। इस वाकये को जब आज याद करता हूँ तो किसी रोमांच से कम नहीं लगता। यह कहना है 56 वर्षों से तबला वाद्य को खुदा की इबादत मान स्वर और लय के हर रोज फूल अर्पित कर रहे उस्ताद निसार हुसैन का। संगीत के क्षेत्र में अथक रियाज और अनुभव के दम पर वर्तमान में भी मंचों की शान बढ़ा रहे इस फनकार ने संगीत की तीनों विधाओं में समान वर्चस्व कायम किया है। निसार हुसैन ने तबले की तालीम अपने पिता और गुरु उस्ताद काले खां और बड़े ताऊ उस्ताद शफ़ी खां से ली। निसार आकाशवाणी से टॉप ग्रेड कलाकार से सेवा निवृत हुए हैं।
बिरजू महाराज ने की तारीफ
बात 1978 की है। जब कथक के नामचीन कलाकार पं. बिरजू महाराज खजुराहो फेस्टिवल में नाच रहे थे तब निसार हुसैन उनके साथ संगत कर रहे थे। लय के साथ थिरकते बिरजू महाराज के पांव और तबले पर थिरकती उनकी अंगुलियां संगीत रसिकों को रोमांचित कर रही थीं। तभी बिरजू महाराज ने कहा ऐसा लग रहा है जैसे निसार उनके साथ बरसों से बजा रहे हैं।मुम्बई में तबले के दिग्गज अहमद जान थिरकवां एवं पद्म विभूषण पं. किशन महाराज के समक्ष भी प्रस्तुति दी है।
जयपुर यूं आया दिल्ली-अजराडा घराना
उस्ताद निसार हुसैन ने बताया कि उनके बड़े ताऊ मोहम्मद शफी खां अजराडे घराने के शागिर्द थे वहीँ दिल्ली घराने के तबला नवाज खुर्शीद खां जयपुर आकर बस गए।इन दोनों कलाकारों ने जयपुर में दिल्ली और अजराडे घराने का तबला स्थापित किया।वहीँ हिदायत खां ने पं. चिरंजीलाल से तबले की शिक्षा ली।
तीनों विधाओं में महारथ
उस्ताद निसार हुसैन संगीत की तीनों विधा गायन, वादन और नृत्य के साथ तबला संगत में महारथ रखते हैं। देश के दिग्गज फनकारों में पं. बिरजू महाराज, सितारा देवी, पं. जसराज, निर्मला देवी, पं. कृष्ण कुमार, लक्ष्मी शंकर, उस्ताद गुलाम मुस्तफा खां, उस्ताद अली अकबर खां, उस्ताद सुल्तान खां, उस्ताद अमजद अली खां, उस्ताद शाहिद परवेज एवं पं. शशि मोहन भट्ट के साथ संगत का बड़ा अनुभव रखते हैं।उन्होंने कहा कि संगीत को लोगों में जीवित रखने के लिए वक़्त के साथ चलना होगा।